Tuesday, June 12, 2012


यस्यां वृक्षा वानस्पत्या ध्रुवास्तिषठति विशवाहा



पृथिवीं विशवधायसं घृतामचछा वदामसि ॥



भावार्थ - वृक्ष और नाना प्रकार की वनस्पतियाँ सदा स्थिर

विराजती हैं। समस्त पदार्थों और समस्त जगत को धारण

करने वाली उस पृथ्वी की हम स्तुति करते हैं।