क्या रिश्ते इक पल में बिखर जातें हैं,
क्या उन्हें जोड़ने वाला धागा इतना कच्चा है ,
इक झटका लगते ही वे बिखर जातें हैं।
नहीं सबमें दंभ भरा है ,झूठा अभिमान ,झूठी शान ।
धागा तो प्रयास करता है उन्हें फिर से जोड़ने का ,
लेकिन अपनी रौ में वे इतने आगे निकल गये हैं
कि उन्हें अपने टूटे रिश्तों की सिसकियां भी सुनाईं नहीं देतीं ।
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